किलर कफ सीरप: औषधि निरीक्षक के पद खाली, प्रयोगशालाओं की भी कमी; कैसे हो दवाओं की जांच? - killer cough syrup deaths drug ins
Updated: Wed, 08 Oct 2025 10:19 PM (IST) मध्य प्रदेश और राजस्थान में जहरीली कफ सीरप से बच्चों की मौत के बाद कई राज्यों की औषधि नियंत्रण व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। कई राज्यों में औषधि नियंत्रक और निरीक्षकों के पद खाली हैं, जिससे दवाओं की जांच प्रभावित हो रही है। दिल्ली जैसे बड़े दवा बाजार में भी सरकारी प्रयोगशाला नहीं है। कई राज्यों में प्रयोगशालाओं की कमी और स्टाफ की कमी के कारण दवाओं की जांच में देरी हो रही है, जिससे नकली और जहरीली दवाओं का खतरा बढ़ गया है। जागरण टीम, नई दिल्ली। जहरीला कफ सीरप पीने से मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौतों ने राज्यों की औषधि नियंत्रण व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। अधिकतर राज्यों में औषधि नियंत्रक का ही पद खाली है, जिन पर दवाओं की जांच करने की पूरी जिम्मेवारी होती है। राज्य लैब की कमी झेल रहे हैं। नतीजा सैंपल दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं और जांच में देरी होती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें दिल्ली में जांच के लिए सरकारी प्रयोगशाल नहीं राजधानी दिल्ली उत्तर-भारत का सबसे बड़ा दवा बाजार है, जहां नकली दवाओं के जांच के लिए कोई सरकारी प्रयोगशाला नहीं है। यहां दवा की जांच चंडीगढ़ की क्षेत्रीय दवा परीक्षण प्रयोगशाला और निजी प्रयोगशाला के भरोसे है। यहां से पिछले तीन महीने में 23 सैंपल भेजे गए हैं। पूरे वर्ष में 2000 के करीब सैंपल भेजे जाते हैं, जिसमें करीब 1200 सैंपल मानकों पर खरे मिले, करीब 400 नकली निकले। यहां औषधि निरीक्षक के 46 पद हैं, जिसमें सात पद खाली हैं। यूपी के 13 जिलों में एक भी औषधि निरीक्षक नहीं उत्तर प्रदेश में औषधि निरीक्षकों के 109 में से 32 पद रिक्त चल रहे हैं। कई औषधि निरीक्षकों के पास दो जिलों का प्रभार है। मुरादाबाद, गोरखपुर, झांसी, महराजगंज, देवरिया, फर्रुखाबाद, महोबा, चित्रकूट, चंदौली, कासगंज सहित 13 जिले ऐसे हैं, जहां एक भी औषधि निरीक्षक नहीं हैं। इससे समझा जा सकता है कि दवाओं की जांच व नमूने लिए जाने का काम किस कदर प्रभावित हो रहा होगा। मंडल मुख्यालय वाले जिलों में दो-दो औषधि निरीक्षक के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अधिकांश जिलों में एक-एक निरीक्षक ही हैं। मुरादाबाद, गोरखपुर व झांसी मंडल मुख्यालय पर भी औषधि निरीक्षक नहीं हैं। मप्र में औषधि निरीक्षकों के 96 पदों में 79 ही पदस्थ मध्य प्रदेश जहां पिछले एक महीने में जहरीले कफ सीरप से 20 बच्चों की मौत हो गई, वहां औषधि निरीक्षकों के 96 पदों में से 79 ही पदस्थ हैं। कफ सीरप मामले के बाद यहां पदस्थ शोभित कोष्टा को निलंबित किए जाने के बाद उप औषधि नियंत्रक का एक पद रिक्त हो गया है। प्रदेश में दवाओं के सैंपल की जांच के लिए वर्ष 2024 तक एकमात्र लैब भोपाल में थी। इस वर्ष से इंदौर और जबलपुर में लैब प्रारंभ हो गई है। प्रदेश में हर वर्ष सात हजार से अधिक सैंपल जांच के लिए आते हैं। 2024 में 7211 सैंपल भोपाल स्थित लैब में आए, पर क्षमता कम होने के कारण 4398 सैंपलों की जांच ही हो पाई। इनमें 51 सैंपल अमानक पाए गए। हिमाचल में एक लैब, जहां सभी दवाओं की जांच संभव नहीं हिमाचल प्रदेश में दवाओं की जांच के लिए औषधि निरीक्षकों के 44 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 39 ही पदस्थ हैं। बद्दी में इसी वर्ष 32 करोड़ रुपये की लागत से सरकारी ड्रग टे¨स्टग लैब निर्मित की गई है। प्रदेश में दवाओं की अभी रैंडम जांच की जाती है। संदेह होने की स्थिति में उसे जांच के लिए लैब भेजा जाता है। बद्दी लैब से जांच रिपोर्ट आने में चार से पांच दिन लग रहे हैं। इसकी क्षमता कम होने से प्रदेश में बनने वाली सभी दवाओं की जांच संभव नहीं है। बिहार में सीरप जांच के लिए अभी मंगाया जा रहा रसायन बिहार में कफ सीरप के रसायनों की जांच की व्यवस्था तो है, पर पटना के अगमकुआं में विकसित अत्याधुनिक औषधि प्रयोगशाला में जांच के लिए आवश्यक रसायन ही नहीं हैं। प्रयोगशाला के प्रभारी अधिकारी सह माइक्रो बायोलाजिस्ट डा. सत्येंदु सागर ने बताया कि जांच के लिए आवश्यक केमिकल की खरीद का आर्डर दिया चुका है। दो-तीन दिनों में केमिकल और नमूनों के आते ही कफ सीरपों की जांच शुरू हो जाएगी। उन्होंने दावा किया कि गुणवत्तापूर्ण जांच रिपोर्ट उसी दिन शाम तक प्राप्त हो जाएगी। झारखंड में सिर्फ एक लैब, उसमें भी स्टाफ की भारी कमी झारखंड में दवा की जांच की ठोस व्यवस्था नहीं है। रांची में लैब है, लेकिन वहां सीमित जांच हो पाती है। सिर्फ चार आउटसोर्स कर्मियों के भरोसे लैब चल रही है। जमशेदपुर समेत कई जिलों से दवाओं के कुछ नमूने जांच के लिए कोलकाता सेंट्रल लैब और गुवाहाटी क्षेत्रीय लैब भेजे गए थे, जिनमें 77 सैंपल बिना जांच के वापस लौटा दिए गए, क्योंकि वहां पहले ही ही बड़ी संख्या में नमूने जांच के लिए पड़े हैं। पूरे राज्य में औषधि निरीक्षकों के 42 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 12 पद खाली हैं। राज्य के 24 जिलों में दवा जांच की जिम्मेदारी केवल 12 औषधि निरीक्षकों के ही जिम्मे है। उत्तराखंड में लैब है, मगर जांच रिपोर्ट आने में होता है विलंब उत्तराखंड के देहरादून में राज्य औषधि परीक्षण प्रयोगशाला है। यहां छह मशीनें हैं, लेकिन दवाओं की जांच रिपोर्ट आने में समय लगता है। केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित कफ सीरप को लेकर जारी गाइडलाइन के क्रम में राज्य में औषधि प्रशासन और खाद्य संरक्षा की टीमें लगातार औचक निरीक्षण अभियान चला रही हैं। कफ सीरपों के 148 नमूने परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजे गए हैं। अब तक एक भी नमूने की रिपोर्ट नहीं आ पाई है। स्टेट ड्रग कंट्रोलर ताजबर ¨सह जग्गी के अनुसार 10 अक्टूबर से रिपोर्ट मिलनी शुरू हो जाएगी। छत्तीसगढ़ से कोलकाता भेजा जाता है नमूना छत्तीसगढ़ में दवा की जांच की सुविधा नहीं है। यहां से नमूना जांच के लिए कोलकाता भेजा जाता है। वहां से रिपोर्ट आने में एक से तीन महीने तक लग जाते है। हालांकि, सहायक ड्रग कंट्रोल के राज्य में 20 पद हैं, जो पूरे भरे हुए हैं। पंजाब में नहीं बिकता कोल्डि्रफ कफ सीरप पंजाब में सरकार के पास अपनी लैब है। इसके अतिरिक्त चंडीगढ़ और दिल्ली की निजी लैब से भी दवाओं की जांच कराई जाती है। सरकार का दावा है कि राज्य में करीब 100 फार्मा कंपनियां हैं। सभी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिटों से जब भी दवा का बैच निकलता है, उसकी लैब टैस्टिंग होती है। कफ सीरप से बच्चों की मौत के बाद राज्य में कोल्डि्रफ को प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि, अब तक कहीं से यह जानकारी नहीं मिली है कि यह दवा वहां बिकती भी थी।