महाराजा, जो 130 साल पहले घर में शौचालय बनाने पर देता था इनाम, किए अनूठे काम
Last Updated: August 30, 2025, 08:09 IST जिस समय भारत में घरों में शौचालय बनाना सोचा भी नहीं जाता था तब देश की एक संपन्न रियासत के महाराजा ने लोगों को आदेश दिया कि वो अपने घरों में शौचालय बनाएं, इस पर लोग कैसे नाराज हो गए.
क्या आप सोच सकते हैं कि भारत में जब कोई राजा महाराजा स्वच्छता के बारे में ज्यादा सोचते तक नहीं थे तब एक महाराजा ने अपने राज्य में लोगों के लिए आदेश दिया पक्का मकान बनाने वाले हर शख्स अपने घर में लैट्रिन जरूर बनवाए, नहीं तो उसका नक्शा पास नहीं होगा. इसका बड़ा विरोध हुआ, लोग गुस्से से भर गए, क्योंकि उनके लिए ये घर को अपवित्र करने का काम था लेकिन फिर उन्होंने कैसे इसके लिए लोगों को राजी भी कर लिया.
ये महाराजा थे बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़, जिन्होंने अपने राज्य में लोगों को पक्के मकानों के साथ लैट्रिन बनवाने का आदेश दिया था. ऐसा करने वाले वो भारत के पहले राजा थे. वह 1875 से लेकर 1939 तक यानि 54 सालों तक बड़ौदा रियासत के राजा रहे. वह भारत के उन कुछ शासकों में थे, जिन्होंने बहुत जल्दी समझ लिया था कि स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य राज्य की उन्नति के लिए सबसे जरूरी है.
महाराजा ने प्रजा से घरों में शौचालय बनवाने का आदेश दिया
वह पहले भारतीय राजा थे, जिन्होंने सरकारी स्तर पर आदेश देकर कहा कि पक्के घर के साथ शौचालय बनना ही चाहिए. महाराजा का कहना था, “अगर घर के अंदर शौचालय नहीं है तो घर अधूरा है.” उनके पहले भारत के ज़्यादातर राजाओं ने इस विषय को छुआ तक नहीं, क्योंकि समाज में इसे “निजी मामला” माना जाता था.
खुले में शौच को रोकने के लिए हेल्थ इंस्पेक्टर की नियुक्ति की
यही कारण है कि उन्हें “भारत में आधुनिक स्वच्छता आंदोलन का अग्रदूत” भी कहा जाता है. इस आदेश का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वच्छता में सुधार करना. खुले में शौच की प्रथा को रोकना था. उन्होंने हेल्थ इंस्पेक्टर की नियुक्ति की, जो ये देखते थे कि सार्वजनिक और निजी जगहों पर खुले में शौच न हो.
बडौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, जिन्होंने अपनी रियासत में सफाई, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कई बेहतर काम किए.(wiki commons)
अगर शौचालय नहीं हो तो घर का नक्शा पास नहीं होगा
1890 के दशक में ही बड़ौदा नगर और छोटे कस्बों में नगरपालिकाओं को यह आदेश दिया गया कि हर नए पक्के घर में लैट्रिन यानि शौचालय अनिवार्य रूप से बनाया जाए. नगर निगम को निर्देश था कि अगर कोई व्यक्ति घर बनवाए. उसमें शौचालय नहीं हो, तो नक्शा पास नहीं किया जाए. यही आदेश गांवों के पक्के घरों पर भी लागू किया गया.
लोग इस आदेश से बहुत नाराज हो गए
उनके इस आदेश पर लोग नाराज हो गए. क्योंकि उस समय तक लोग अपने घरों में शौचालय बनवाते ही नहीं थे. उन्हें लगता था कि अगर घर में साथ में शौचालय बनवाया गया तो घर अपवित्र हो जाएगा. आदेश जारी होने के बाद, उम्मीद के अनुसार, लोगों ने इसका जबरदस्त विरोध किया.
विरोध की वजह अगर धार्मिक मान्यताएं थीं, क्योंकि लोगों को लग रहा था कि इससे घर के अंदर गंदगी हो जाएगी. फिर इस शौचालय को साफ कौन करेगा. क्योंकि ये तब ये माना जाता था कि ये सब सफाई का काम निम्न जाति के लोग करते हैं.
पुराने टॉयलेट इस तरह होते थे, जिनके नीचे गड्ढ़े या टैंक जैसी ऐसी व्यवस्था होती थी, जिससे मल निकाला जा सके या गड्ढा भर जाने के बाद उसे दबाया जा सके.
लोगों ने पक्के मकान बनवाने ही बंद कर दिए
नतीजा ये हुआ कि लोगों ने पक्के मकान बनाने ही बंद कर दिए ताकि उन्हें शौचालय न बनवाना पड़े. वो कच्चे मकान बनाकर रहने लगे. जब महाराजा को ये बात मालूम हुई तो उन्होंने समझ लिया कि केवल आदेश देने से काम नहीं चलेगा, समस्या के मूल में जाना होगा. उन्होंने एक और आदेश जारी किया, जो भी व्यक्ति अपने पक्के मकान में शौचालय बनवाएगा, उसे सरकार की ओर से एक निश्चित राशि का इनाम (सब्सिडी) दिया जाएगा.”
फिर उन्होंने दूसरा आदेश दिया
इस आर्थिक प्रोत्साहन ने स्थिति को पलट दिया. अब लोग पक्के मकान बनाने और उसमें शौचालय लगवाने के लिए प्रोत्साहित हुए, क्योंकि इससे उन्हें वित्तीय लाभ हो रहा था. इस तरह, महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने ना केवल भारत में घरों के अंदर शौचालय बनवाने की शुरुआत की, बल्कि लोगों की मानसिकता बदलने और सामाजिक विरोध को दूर करने के लिए एक बहुत ही चतुर नीति भी अपनाई.
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि उस समय भी कुछ अमीर जमींदारों, राजाओं और अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों में शौचालय होते थे, लेकिन ये एक सामान्य प्रथा नहीं थी. इसलिए, ऐतिहासिक रूप से, बड़ौदा (वडोदरा) के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III को भारत में आम नागरिकों द्वारा पक्के घरों में शौचालय बनवाने की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है.
1890 में भारतीय घरों में क्या थी टॉयलेट की स्थिति
1890 के आसपास अधिकांश भारतीय घरों में टॉयलेट नहीं बनाए जाते थे. कई जगह खुले में शौच ही आम प्रथा थी, खासकर ग्रामीण और सामान्य घरों में. केवल राजघरानों, अमीरों या उच्चवर्गीय परिवारों के कुछ घरों में ही शौचालय जैसी व्यवस्था होती थी, जिनका निर्माण विशेष तरीके से किया जाता था.
जब तब आमघरों में शौचालय बनने शुरू हुए तो ये उठव्वा शौचालय थे, जिसमें टैंक बनाकर ऊपर से बैठने की जगह बना दी जाती थी. अगले दिन उसे मल उठाने वाले उठाकर और साफ करके जाता था. कुछ घरों में उसके नीचे एक गड्ढा खोद दिया जाता था. शाही या कुछ बड़े घरों में, जमीन के नीचे एक के ऊपर एक मिट्टी के घड़ों की शृंखला रखी जाती थी, जिनके तल में छेद होता था, जिससे मल धीरे-धीरे मिट्टी में मिल जाता था.
किसी भी मल निस्तारण का जिम्मा निचली जातियों या नियुक्त सफाईकर्मियों पर होता था, विशेषकर उन घरों में जहां गड्ढा या बर्तन आधारित टॉयलेट होते थे. औपनिवेशिक काल में 1878 के आसपास महानगरीय क्षेत्रों में नगरपालिका कानूनों द्वारा सार्वजनिक और कुछ घरों में शौचालय निर्माण का नियम आया, लेकिन ग्रामीण भारत में खुले में शौच की परंपरा बरकरार रही.
मुगल काल के दौरान महलों में पुरुषों और महिलाओं के अलग-अलग ‘गुसलखाने’ और शौच की विशेष व्यवस्था थी, लेकिन सामूहिक अथवा सामान्य घरों में यह सुविधा दुर्लभ थी.
About the Author Sanjay Srivastavaडिप्टी एडीटर लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास…और पढ़ें लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास… और पढ़ें न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें। Location : Noida, Gautam Buddha Nagar, Uttar Pradesh First Published : August 29, 2025, 16:29 IST homeknowledge महाराजा, जो 130 साल पहले घर में शौचालय बनाने पर देता था इनाम, किए अनूठे काम