हमास ने दो साल से आखिर कहां छिपाया इजरायली बंधकों को - ना मोसाद ढूंढ पाया ना ही CIA

7 अक्टूबर 2023 हमास ने जब दक्षिणी इजरायल पर हमला करके करीब 1200 इजरायलियों और विदेशियों को मार दिया तो वो अपने साथ 251 लोगों को पकड़ भी ले गए. 148 बंधक रिहा हो चुके हैं लेकिन करीब 59 बंधक अब भी हमास की कैद में हैं. इसमें से कुछ हो सकता है कि मर भी चुके हों लेकिन मोटे अनुमान के अनुसार 30 से ज्यादा जिंदा यहूदी बंधक अब भी हमास की पकड़ में हैं. हमास ने इन्हें कहां बंदी बनाकर रखा है, उसका पता लगाने के लिए दुनिया की सबसे खतरनाक जासूसी एजेंसी मोसाद और सीआईए दोनों ने एडीचोटी का जोर लगा लिया है लेकिन वो उसे तलाश नहीं पाए हैं. इजरायल से लेकर अमेरिका तक को समझ में नहीं आ रहा है कि हमास ने इन बंधकों को ऐसे किस पाताल में रखा है, जिसके आगे उनके सारी कोशिश नाकाम हो चुकी हैं. हमास के पास ये बंधक करीब दो सालों से हैं.

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, 22 जून 2025 तक लगभग 50 बंधक अब भी हमास के कब्जे में हैं. अन्य स्रोतों के अनुसार, ये संख्या करीब 59 बताई जा रही है. इसमें कुछ मृत हो सकते हैं. क्या इन्हें गाजा शहर के नीचे बनाई गईं सुरंगों की भूलभुलैया में छिपाकर रखा गया है या कहीं और. बहुत हैरानी की बात है कि इजरायल और अमेरिका ने उन्हें ढूंढने के लिए चप्पा चप्पा छान मारा है लेकिन वो कहीं नहीं मिले. इजरायल ने मोसाद को लगाया कि किसी भी तरह से उन्हें ढूंढकर निकाल लाएं. सीआईए ने भी इस काम में भरपूर मदद की. दोनों ही देशों के बाद दुनिया के सबसे बेहतरीन टोही उपकरण हैं और आसमान में पूरी दुनिया पर के किसी भी मूवमेंट पर नजर रखने वाली ताकतवर सेटेलाइट्स लेकिन वो भी नाकाम हो गईं. कोई भी भनक उन्हें नहीं लग सकी.

कहां गए आखिर यहूदी बंधक 
ये सवाल आज की दुनिया की सबसे जटिल और खतरनाक पहेलियों में एक है – हमास द्वारा पकड़े गए इज़रायली बंधक आखिर कहां रखे गए हैं और क्यों दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसियां मोसाद और सीआईए उन्हें खोज नहीं पा रहीं? इसका जवाब सिर्फ सैन्य तकनीक या जासूसी के दायरे में नहीं, बल्कि गाज़ा के भूगोल, हमास की रणनीति और बंधकों को “जीवित ढाल” बनाने की जटिल राजनीति में छिपा है.

गाज़ा पट्टी का क्षेत्रफल महज 365 वर्ग किलोमीटर है, यानी दिल्ली शहर से भी छोटा लेकिन यहां करीब 23 लाख लोग रहते हैं. यह इलाका इतना भीड़भाड़ वाला है कि किसी भी घर, मस्जिद, स्कूल या अस्पताल के नीचे बंधकों को छिपाना संभव है. गाजा में 400 किमी से लंबी घुमावदार बड़ी सुरंगें
गाज़ा को “टनल्स का शहर” कहा जाता है. माना जाता है कि हमास ने 400 से 500 किलोमीटर लंबा भूमिगत नेटवर्क बना रखा है – यह लंदन की मेट्रो से भी बड़ा है. इन सुरंगों को “गाज़ा मेट्रो” भी कहा जाता है. सुरंगें इतनी गहरी हैं कि 20–40 मीटर नीचे तक जाती हैं. इनमें बिजली, संचार लाइनें और वेंटिलेशन सिस्टम मौजूद है. कई सुरंगें स्कूलों, अस्पतालों और मस्जिदों के नीचे छिपी हैं.

यही वह जगह है जहां बंधकों को रखने की सबसे अधिक संभावना है. यहां तक कि इज़रायल के लड़ाकू जेट और बंकर-बस्टर बम भी हर बार असरदार साबित नहीं होते क्योंकि सुरंगों का नेटवर्क मकड़ी के जाले की तरह है—एक हिस्सा नष्ट हो तो दूसरा रास्ता सक्रिय हो जाता है.

सभी बंधक साथ नहीं रखे गए होंगे
विशेषज्ञ मानते हैं कि हमास ने सभी बंधकों को एक जगह नहीं रखा. ऐसा करना जोखिम भरा होगा, क्योंकि एक ही सैन्य हमले से दर्जनों बंधक मारे जा सकते थे. इसके बजाय बंधकों को छोटे-छोटे पॉकेट्स में बांटा गया होगा. कुछ अस्पतालों के बेसमेंट में, कुछ सुरंगों के गहरे हिस्सों में, कुछ स्थानीय कमांडरों के घरों या सुरक्षित ठिकानों में. इस तरह अगर किसी जगह पर छापा मारा भी जाए, तो सारे बंधक एक साथ खतरे में नहीं आते.

मोसाद और सीआईए दुनिया की सबसे तेज-तर्रार एजेंसियां मानी जाती हैं. उनके पास सैटेलाइट, साइबर सर्विलांस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हाई-टेक ड्रोन हैं. फिर भी वे बंधकों को खोजने में नाकाम क्यों हैं?

क्यों नाकाम साबित हुई मोसाद और सीआईए
इसकी मुख्य वजह मोसाद की गाजा में नहीं के बराबर पकड़ है. यानि वहां उसके कोई भेदिए नहीं हैं. गाज़ा एक बंद समाज है. यहां स्थानीय लोग बाहरी दुनिया से बहुत कटे हुए हैं. कोई भी व्यक्ति जो मोसाद को सूचना दे, उसकी जान खतरे में होती है. हमास ने अपने कम्युनिकेशन को बेहद सुरक्षित बनाया है. सुरंगों के अंदर मोबाइल या इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे इलेक्ट्रॉनिक जासूसी बेअसर हो जाती है.

हमास बंधकों को केवल छिपा कर नहीं रखता, बल्कि उन्हें रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है. बंधकों के जरिए हमास इज़रायल से युद्धविराम या कैदियों की रिहाई की शर्तें मनवाता है.जब इज़रायल का हमला बंधकों को खतरे में डालता है, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव इज़रायल पर बढ़ता है. बंधकों को उन ठिकानों पर रखा जाता है जिन्हें इज़रायल आसानी से निशाना नहीं बना सकता – जैसे अस्पताल या मस्जिद. हालांकि इजरायल ने दोनों ही जगहों पर हमला करके बंधकों का पता लगाने की कोशिश की है.

लंबी चौड़ी टनल्स 20- 40 मीटर जमीन के नीचे 
टनल्स न केवल बंधकों को छिपाने का साधन हैं बल्कि हमास की पूरी सैन्य रणनीति की रीढ़ हैं.इनके जरिए हमास बंधकों को एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकता है. इन सुरंगों में उसके वाहन आराम से दौड़ सकते हैं. अगर किसी सुरंग का रास्ता उजागर हो जाए तो उन्हें तुरंत दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाता है.सैटेलाइट और ड्रोन हवा से ऊपर देखते हैं, लेकिन 20–40 मीटर नीचे क्या है, यह जानना बेहद कठिन है. सुरंगें बमबारी से भी सुरक्षित रहती हैं, खासकर अगर वे घनी आबादी वाले इलाकों में हों.

इज़रायल के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसे बचाव और हमला दोनों साथ करना पड़ता है. अगर वह तेज़ी से हमला करे तो बंधकों की जान जा सकती है. अगर धीमा चले तो हमास को समय मिलता है और वह शर्तें थोपता है. यही कारण है कि दो साल होने के बाद भी उसके लिए बंधकों को सुरक्षित वापस लाना बहुत मुश्किल हो गया है. कैसे हमास ने पिछले कुछ सालों में ये सुरंगे बनाईं
गाजा में ये टनल्स नेटवर्क किसी एक-दो साल की परियोजना नहीं थे. कई सालों तक छोटे-छोटे हिस्सों का जोड़-जोड़ कर बड़ा नेटवर्क तैयार हुआ. जो दस्तावेज पकड़े गए और इजरायल डिफेंस फोर्सेज की रिपोर्ट से पता लगता है कि एक किमी टनल बनाने में माहों-एक साल तक लग सकता है. इन टनल्स को बनाने में बड़े पैमाने पर सामग्री और मेहनत लगी होगी. बड़ै पैमाने पर मजदूर और निर्माण-सामग्री का इस्तेमाल हुआ होगा. इजरायली सेना के ब्लॉकेड के बावजूद कुछ सामान जमीन के भीतर छुपाकर या सीमावर्ती स्मगलिंग मार्गों से लाया गया होगा.

खुली रिपोर्ट्स और युद्ध-विश्लेषण बताते हैं कि कई टनलें कंक्रीट-लाइन्ड, संकरी परंतु गहरी थीं और जाल की तरह कई शाखाओं से जुड़ी थीं ताकि एक मार्ग ध्वस्त हो तो दूसरा काम दे. टनल के प्रवेश और बाहर जाने के मार्ग को अक्सर घरों, खेतों, मस्जिदों या दूसरे नागरिक ढांचों के भीतर या नीचे छिपाकर रखा जाता है. जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है. इज़राइल क्यों नहीं रोक पाया
टनलें सालों में बनीं; वे छोटे-छोटे खंडों में तैयार हुईं. सही बात तो ये है कि इजरायल को इसकी भनक तक नहीं लगी होगी. इजरायल की सरकार को कभी टनल्स की ज्यादा गंभीरता का अहसास तक नहीं हुआ. वैसे इजरायल ने कुछ कार्रवाई तो की लेकिन वो शायद पर्याप्त नहीं थीं.

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