बिहार की राजनीति में महिला मतदाताओं का महत्व लगातार बढ़ रहा है। 2010 से लेकर 2020 तक के चुनावों में महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले कहीं ज़्यादा रही है। माना जा रहा है कि इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रियंका गांधी ने तीज के मौके पर राहुल-तेजस्वी की मतदाता अधिकार यात्रा में कदम रखा है। यह सिर्फ़ धार्मिक या सामाजिक उपस्थिति नहीं है, बल्कि महिला मतदाताओं के बीच भावनात्मक जुड़ाव बनाने की रणनीति है। तीज बिहार की महिलाओं के सबसे बड़े व्रतों में से एक है। इसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। प्रियंका का तीज के मौके पर बिहार आना सीधा संदेश है कि भारत-नेता गठबंधन महिलाओं की आकांक्षाओं और आवाज़ को केंद्र में रख रहा है।
प्रियंका को तीज पर लाकर महिलाओं को संदेश देने की कोशिश प्रियंका की छवि एक मज़बूत महिला नेता की रही है। उनकी तुलना अक्सर इंदिरा गांधी से की जाती है। ऐसे में ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों की महिला मतदाता उन्हें “अपनी जैसी” प्रतिनिधि मान सकती हैं। महिलाओं के नज़रिए से शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई और रोज़गार से जुड़े मुद्दों को उठाकर प्रियंका न सिर्फ़ कांग्रेस, बल्कि पूरे भारत गठबंधन के लिए महिला आधार मज़बूत करने की कोशिश कर रही हैं।
यात्रा में अखिलेश की भागीदारी… यादव मतदाताओं के लिए एक संदेश
वहीं, बुधवार को मतदाता अधिकार यात्रा के लिए अखिलेश यादव का बिहार आगमन इस बात का संकेत है कि भारत गठबंधन ने जातीय समीकरणों के आधार पर अपनी चुनावी रणनीति मज़बूत करनी शुरू कर दी है। बिहार की राजनीति में मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण हमेशा से निर्णायक रहा है। यही समीकरण लालू यादव की राजनीति की नींव रहा है।
राहुल-अखिलेश-तेजस्वी की तिकड़ी मुसलमानों के लिए एक संदेश
अखिलेश का आगमन यादव समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश है कि उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर बिहार में भी यादव राजनीति को मज़बूत करने का समय आ गया है। साथ ही, राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त मौजूदगी को उन मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की एक संतुलित रणनीति माना जा रहा है जो कभी कांग्रेस, कभी राजद और हाल के वर्षों में एआईएमआईएम के साथ रहे हैं।
एनडीए के सामने महिलाओं और मुस्लिम-यादव वोटों को अपने साथ बनाए रखने की चुनौती
नीतीश कुमार और भाजपा का गठबंधन इस समय सत्ता में है, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं और मुस्लिम-यादव वोटों को अपने साथ बनाए रखना है। नीतीश सरकार ने ‘आरक्षण’, ‘साइकिल योजना’ और ‘आरटीपीएस सेवा’ जैसी योजनाओं के ज़रिए महिला मतदाताओं पर मज़बूत पकड़ बनाई थी। लेकिन महंगाई, शराबबंदी की विफलता और अपराध जैसे मुद्दों ने महिला मतदाताओं को प्रभावित किया है। प्रियंका गांधी की सक्रियता इस वर्ग को झकझोर सकती है। अगर यह वोट बैंक पूरी तरह से भारत-जदयू गठबंधन के पक्ष में चला जाता है, तो भाजपा-जदयू को सीटों का भारी नुकसान हो सकता है। खासकर सीमांचल, मिथिला और मगध क्षेत्र में यह समीकरण निर्णायक साबित होगा।
बिहार में महिला मतदाता ही सत्ता का रास्ता हैं
बिहार के चुनावी इतिहास में देखा गया है कि कोई भी पार्टी तब तक सत्ता हासिल नहीं कर सकती जब तक उसके पास महिलाओं का ठोस समर्थन और मज़बूत जातीय समीकरण न हो। कुल मतदाताओं में महिलाओं की संख्या लगभग आधी है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से 4-6% ज़्यादा रहा।
भारत गठबंधन ने अपनी रणनीति तीन स्तरों पर बाँटी है:
महिलाओं के लिए प्रियंका गांधी: तीज और छठ जैसे मौकों पर महिला मतदाताओं से सीधा संवाद। मुस्लिम-यादव समीकरण के लिए अखिलेश यादव और राहुल गांधी: जातिगत और धार्मिक भावनाओं को जोड़ने की कोशिश। युवाओं के लिए तेजस्वी यादव: रोज़गार, शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दों पर युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश।
मिथिलांचल पर महागठबंधन का विशेष ध्यान
कांग्रेस की प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, राजद के तेजस्वी यादव के अलावा दक्षिण भारत के दिग्गज डीएमके नेता एम.के. स्टालिन भी यहाँ मंच साझा करने वाले हैं। यह तस्वीर साफ़ तौर पर दर्शाती है कि भारत गठबंधन मिथिलांचल को निर्णायक मान रहा है। मिथिलांचल सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से बिहार का वह क्षेत्र है जिसने हमेशा राज्य की राजनीति को दिशा दी है। यहाँ की सीटें चुनाव परिणाम बदलने की ताकत रखती हैं।
50-55 विधानसभा सीटों पर टिकी हैं नज़रें
मिथिलांचल मिथिला संस्कृति, मधुबनी पेंटिंग, दरभंगा राज और मैथिली भाषा के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र शिक्षा, साहित्य और आंदोलन की भूमि रहा है। राजनीतिक रूप से यह क्षेत्र 40 लोकसभा सीटों में से कम से कम 12-13 और लगभग 50-55 विधानसभा सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। यहाँ की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं। ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ और अन्य सवर्ण जातियों के साथ-साथ यादव, कुर्मी, दलित और मुस्लिम मतदाता भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यही वजह है कि मिथिलांचल हर चुनाव में “किंगमेकर” की भूमिका निभाता है।
मिथिलांचल में कई महत्वपूर्ण सीटें हैं, जिन पर इस बार सबसे ज़्यादा ज़ोर होगा:
दरभंगा: इसे सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। यहाँ पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की थी। लेकिन कांग्रेस और राजद की संयुक्त ताकत इसे चुनौती दे सकती है। मधुबनी: यहाँ का मिथिला चित्रकला क्षेत्र विश्व प्रसिद्ध है। जातिगत समीकरणों के लिहाज से यह बेहद पेचीदा सीट है। यह भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन विपक्ष इसे तोड़ने की कोशिश में लगा है। समस्तीपुर: दलित और पिछड़े मतदाताओं का बड़ा प्रभाव है। कांग्रेस और राजद की संयुक्त रणनीति यहाँ सीट पर कड़ी टक्कर दे सकती है। बेगूसराय: राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का उभरता चेहरा यहाँ से सांसद हैं। यह सीट वैचारिक संघर्ष का केंद्र रही है। वामपंथी और राजद का यहाँ प्रभाव रहा है। सीतामढ़ी: ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाली यह सीट राजनीतिक दृष्टि से भी निर्णायक है। यादव और मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा यहाँ समीकरण बदल सकता है। सुपौल और मधेपुरा: शरद यादव की राजनीतिक कर्मभूमि रहे ये इलाके चुनावी दृष्टि से आज भी चर्चा में हैं। यादव, मुस्लिम और दलित वोटों का सीधा असर पड़ता है।
भारत गठबंधन इस बार “गठबंधन की राजनीति” कर रहा है प्रियंका गांधी: महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए। राहुल गांधी: राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा, युवाओं और छात्रों को आकर्षित करने के लिए। तेजस्वी यादव: यादवों और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व। स्टालिन: दक्षिण भारत का एक बड़ा चेहरा, विपक्षी एकता का प्रतीक।
स्टालिन का एक साथ आना, बिहार दौरा लेकिन भारत पर असर
एक मंच पर आकर ये चारों नेता यह संदेश देना चाहते हैं कि विपक्ष अब सिर्फ़ बिहार का गठबंधन नहीं, बल्कि पूरे भारत का गठबंधन है। स्टालिन, प्रियंका गांधी, राहुल और तेजस्वी का एक मंच पर आना सिर्फ़ एक चुनावी रैली नहीं, बल्कि यह संदेश है कि भारत-चीन गठबंधन बहुत बड़ा दांव पर है। इस रणनीति से साफ़ है कि भारत-चीन गठबंधन अब “मोदी बनाम विपक्ष” तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ज़रिए मतदाताओं से जुड़ने की राह पर है।यह समीकरण भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी रहा है। लेकिन अगर महिलाएं और मुस्लिम-यादव वोट एकजुट होकर विपक्ष की ओर झुकते हैं तो भाजपा-जदयू के लिए समीकरण और भी मुश्किल हो जाएंगे।