Donald Trump Tariff Latest News: डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से भारत-चीन व्यापार संबंधों में नया मोड़

Donald Trump Tariff Latest News: अमेरिका ने टैरिफ से दुनिया में खलबली मचा दी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से पूरी दुनिया में हड़कंप है. इससे वैश्विक व्यापार युद्ध छिड़ने की आशंका है. भारत, चीन हो या पाकिस्तान, अमेरिका ने किसी को नहीं छोड़ा है. सब पर एक नजर से ही टैरिफ लगाया है. डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर के देशों पर जैसे को तैसा वाला टैरिफ लगाया है. माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति से कई देशों के बीच जवाबी कार्रवाई की एक श्रृंखला शुरू हो सकती है. ट्रंप के टैरिफ से जो देश ज्यादा प्रभावित हुए हैं, वो बातचीत का रास्ता अपना सकते हैं. कुछ जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ ऐलान भारत और चीन को काफी नजदीक ला सकता है. ट्रंप के टैरिफ की वजह से ही दो दुश्मन अच्छे दोस्त की राह पर चलकर सबसे बेहतर कारोबार साझेदार बन सकते हैं.

जब डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ का ऐलान नहीं किया था, उससे पहले ही चीन ने कहा, ‘अमेरिका को जल्द ही बातचीत और सहयोग के सही रास्ते पर लौट आना चाहिए, लेकिन अगर अमेरिका युद्ध चाहता है चाहे वह टैरिफ युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या किसी अन्य प्रकार का युद्ध हो, हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं.’ अब तो अमेरिका ने टैरिफ का ऐलान कर दिया है. अमेरिका ने भारत पर 26 फीसदी तो चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लगाया है.

इस बीच ट्रंप की ओर से ‘टैरिफ का दुरुपयोग करने वाला’ देश कहे जाने के बाद भारत भी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के संभावित तरीकों का आकलन कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा था कि भारत अपने टैरिफ में काफी हद तक कमी करेगा.’ चीन और भारत दोनों के लिए ही इन टैरिफ ने नई आर्थिक मुश्किलें पैदा कर दी हैं. अमेरिका के साथ लंबे समय से चले आ रहे व्यापार युद्ध में उलझे चीन के निर्यात पर और भी दबाव बढ़ता दिख रहा है. वहीं, पारंपरिक रूप से अमेरिका का व्यापारिक सहयोगी रहा भारत अब अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता पर पुनर्विचार करने को मजबूर है.

चीन भारत से अधिक सामान खरीदने को तैयार
टैरिफ की घोषणा से ठीक पहले बीजिंग ने कहा कि वो भारत से और अधिक उत्पादों का आयात करने और व्यापार सहयोग को मजबूत करने के लिए तैयार है. बीजिंग के नई दिल्ली में राजदूत जू फीहोंग ने भारतीय उद्यमों से चीन के विकास के लाभ को साझा करने के लिए कहा. उन्होंने चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘हम व्यापार और अन्य क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग को मजबूत करने और चीनी बाजार के अनुकूल भारतीय उत्पादों का ज्यादा आयात करने के लिए भारतीय पक्ष के साथ काम करने को तैयार हैं.’ उन्होंने कहा, ‘उन्होंने कहा, ‘हम और ज्यादा भारतीय उद्योगों का हिमालय पार कर चीन में सहयोग के मौके तलाशने और चीन के विकास का लाभ उठाने के लिए स्वागत करते हैं.’

भारत-चीन व्यापार संबंध पर एक नजर
2010 के दशक में चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया. चीन से आयात…भारतीय निर्यात से आगे निकल गया. 2020-21 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ गई. इसकी वजह से नई दिल्ली ने चीनी निवेशों पर रोक लगा दी. 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और बीजिंग से एफडीआई की जांच शुरू कर दी.

दोनों देशों के बीच कैसा है कारोबार?
दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध और राजनीतिक तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार 2022 में रिकॉर्ड 135.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. यह उनकी गहरी आर्थिक निर्भरता को उजागर करता है. भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 101.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा. चिंता की एक बड़ी बात यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स और रसायनों में चीनी आयात पर भारी निर्भरता के कारण चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है, जो 2023 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

ट्रंप के टैरिफ से दोनों देशों पर खतरा?

• भारत और चीन दोनों ही बड़े निर्यातक देश हैं. ऐसे में अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाने से दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है.

• भारत और चीन दोनों ही एक जैसे आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में दोनों देश व्यावहारिक तौर पर एक दूसरे के साथ सहयोग के रास्ते तलाशने को प्रेरित हैं. इसका मतलब यह नहीं कि दोनों देशों के बीच पूरी तरह से गठबंधन हो जाएगा. बल्कि खास आर्थिक मुद्दों पर रणनीतिक रूप से दोनों देश एक दूसरे के साथ आ सकते हैं.

• दोनों ही देश अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अपने व्यापारिक संबंधों को विविधतापूर्ण बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इससे भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के अवसर पैदा होते हैं.

• ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे मौजूदा क्षेत्रीय आर्थिक ढांचे दोनों देशों को बेहतर सहयोग के लिए मंच प्रदान करते हैं. ये मंच व्यापार, निवेश और आर्थिक विकास पर चर्चा को बढ़ावा देते हैं.

एरिया ऑफ ऑपर्च्युनिटी

  1. अमेरिका की तरफ से भारी टैरिफ का सामना कर रहे चीन की नजर अब भारत पर है. चीन इसे एक वैकल्पिक प्रोडक्शन हब के तौर पर देख रहा है. अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों से बचने के लिए चीनी कंपनियां भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो पार्ट्स और दवा क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं.
  2. दूसरा यह कि चीनी सेमीकंडक्टर फर्मों पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने बाजार में एक खाली जगह बना दी है. भारत, जो घरेलू चिप बनाने में निवेश कर रहा है, उसे चीनी टेक फर्म नए साझेदारों की तलाश करते हुए दिखाई दे सकती हैं.
  3. तीसरा भारत बड़ी मात्रा में तेल और गैस का आयात करता है और वैश्विक ऊर्जा बाजारों में उतार-चढ़ाव के साथ चीन नई आपूर्ति श्रृंखला भागीदारी की तलाश कर रहा है. भारतीय अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में चीनी निवेश बढ़ रहे हैं.

भारत-चीन की दोस्ती में चुनौतियां और रोड़े

• भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय विवादों का एक लम्बा इतिहास रहा है. खासकर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में. व्यापार में प्रोत्साहन के बावजूद ये तनाव दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक एकीकरण को सीमित कर सकते हैं.

• 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत में जनभावना चीन के खिलाफ हो गई. भारत सरकार ने कुछ क्षेत्रों में चीनी निवेश को प्रतिबंधित कर दिया है, जिससे सहयोग की गति धीमी हुई है.

• भारत और चीन टेक्नोलॉजी, टेलीकॉम और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों में सीधे प्रतिस्पर्धा करते हैं. सहयोग के लिए सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता होगी ताकि एक पक्ष का दूसरे पर हावी होने से बचा जा सके.

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