पत्नी की लाश को मक्खन डालकर जलाया, उठीं लपटें तो पहुंची पुलिस... अंगूठी से कैसे खुला मर्डर का राज?

दिल्ली की सियासी और क्राइम फाइलों में दर्ज एक ऐसा मामला जिसने पूरे देश को दहला दिया – ‘तंदूर मर्डर केस’। यह कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं, बल्कि जलते रिश्तों, सियासी ताकत, शक, और इंसाफ की लंबी लड़ाई की है।
दिल्ली की शांत रात और जलता हुआ राज 2 जुलाई 1995 की रात, दिल्ली का अशोक रोड अपने सामान्य शांत माहौल में डूबा था। रात के 11 बजे के करीब एक रेस्तरां से धुआं उठता दिखाई दिया। ज्यादा लोगों ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक सब्ज़ी बेचने वाली महिला की चीख ने माहौल बदल दिया। पुलिस कांस्टेबल वहां पहुंचा और देखा – तंदूर की आग में कुछ अनोखा जल रहा था।

जब उसने पास जाकर देखा, तो हकीकत सामने आई – तंदूर में एक महिला की लाश जलाई जा रही थी।
कातिल ने लाश को जलाने के लिए डाला मक्खन रेस्तरां का तंदूर जल रहा था, और साथ ही एक साजिश भी। अंदर एक लाश को मक्खन डालकर जलाया जा रहा था ताकि वह पूरी तरह राख हो जाए। यह शव था 29 वर्षीय नैना साहनी का – एक कांग्रेस कार्यकर्ता और दिल्ली यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा की पत्नी।

हत्या की वजह: पत्नी पर अवैध संबंधों का शक सुशील शर्मा को शक था कि नैना का अपने कॉलेज फ्रेंड और कांग्रेस साथी मतलूब करीम से अफेयर चल रहा है। घटना वाली रात उसने नैना को फोन पर बात करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। जब उसने फोन मिलाया, दूसरी तरफ मतलूब था। गुस्से में उसने नैना को गोली मार दी – दो गोलियां सिर और गर्दन में लगीं।

तंदूर में जलाने की कोशिश, लेकिन लपटों ने भेद खोल दिया हत्या के बाद सुशील ने अपने रेस्तरां ‘बागिया’ में मैनेजर केशव कुमार की मदद से नैना की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई। तंदूर में डालकर शव को मक्खन से जलाने की कोशिश की गई ताकि कोई पहचान न हो। लेकिन उठती लपटों ने सबका ध्यान खींचा और पुलिस मौके पर पहुंच गई।

पुलिस ने केशव कुमार को पकड़ लिया, लेकिन सुशील शर्मा फरार हो गया।
लाश की पहचान: एक अंगूठी ने खोल दी परतें शव की पहचान करना मुश्किल था। लेकिन टीवी पर खबर देखकर मतलूब करीम को शक हुआ। वह शव की शिनाख्त के लिए पहुंचा लेकिन लाश की हालत इतनी खराब थी कि वह पहचान नहीं पाया। लौटते समय उसे हाथ में एक अंगूठी दिखाई दी – वही अंगूठी नैना पहना करती थी। और यही बना पुलिस के लिए सबसे अहम सुराग।
पोस्टमार्टम से सामने आया सच पहले पोस्टमार्टम में मौत का कारण जलना बताया गया, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दूसरा पोस्टमार्टम करवाया। डॉक्टर टी.डी. डोगरा की टीम ने जांच की और बताया कि नैना की मौत जलने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी। इससे मामला पूरी तरह पलट गया।
गिरफ्तारी और सजा की लंबी लड़ाई
10 जुलाई 1995: 9 दिन तक फरार रहने के बाद सुशील शर्मा ने बेंगलुरु में सरेंडर कर दिया। उसने बाल मुंडवा लिए थे ताकि पहचान न हो।
27 जुलाई 1995: दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की।
7 नवंबर 2003: दिल्ली की निचली अदालत ने सुशील शर्मा को फांसी की सजा सुनाई।
2007: दिल्ली हाई कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा।
2013: सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, कहते हुए कि शरीर को काटने का कोई सबूत नहीं है।
21 दिसंबर 2018: दिल्ली हाई कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया, और सुशील शर्मा 23 साल जेल में बिताने के बाद बाहर आ गया।
सियासत, शक और सिस्टम – तीनों की परीक्षा यह केस सिर्फ एक निजी हत्या नहीं था – इसमें राजनीति की ताकत, पति-पत्नी के रिश्ते में शक, पुलिस की शुरुआती असफलता और कानूनी प्रक्रिया की धीमी रफ्तार शामिल थी। सुशील शर्मा एक राजनीतिक चेहरा था, और यही वजह रही कि मामला शुरू से ही चर्चाओं में बना रहा।
क्या यह न्याय था? या बहुत देर से मिला इंसाफ? इस सवाल का जवाब आज भी बहस का विषय है। नैना साहनी की मौत एक व्यक्तिगत घृणा की परिणति थी, लेकिन उसका अंजाम पूरे समाज के लिए एक चेतावनी बन गया। इस केस ने दिखाया कि शक कितना खतरनाक हो सकता है, और न्याय कितनी लंबी लड़ाई के बाद मिलता है।
निष्कर्ष तंदूर मर्डर केस भारतीय आपराधिक इतिहास के सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक है। यह केस आज भी लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि रिश्तों में पारदर्शिता और संवाद की कितनी अहमियत होती है। वरना, एक गलतफहमी – एक जान की कीमत बन सकती है।
दिल्ली की सियासी और क्राइम फाइलों में दर्ज एक ऐसा मामला जिसने पूरे देश को दहला दिया – ‘तंदूर मर्डर केस’। यह कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं, बल्कि जलते रिश्तों, सियासी ताकत, शक, और इंसाफ की लंबी लड़ाई की है।
दिल्ली की शांत रात और जलता हुआ राज 2 जुलाई 1995 की रात, दिल्ली का अशोक रोड अपने सामान्य शांत माहौल में डूबा था। रात के 11 बजे के करीब एक रेस्तरां से धुआं उठता दिखाई दिया। ज्यादा लोगों ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक सब्ज़ी बेचने वाली महिला की चीख ने माहौल बदल दिया। पुलिस कांस्टेबल वहां पहुंचा और देखा – तंदूर की आग में कुछ अनोखा जल रहा था।
जब उसने पास जाकर देखा, तो हकीकत सामने आई – तंदूर में एक महिला की लाश जलाई जा रही थी।
कातिल ने लाश को जलाने के लिए डाला मक्खन रेस्तरां का तंदूर जल रहा था, और साथ ही एक साजिश भी। अंदर एक लाश को मक्खन डालकर जलाया जा रहा था ताकि वह पूरी तरह राख हो जाए। यह शव था 29 वर्षीय नैना साहनी का – एक कांग्रेस कार्यकर्ता और दिल्ली यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा की पत्नी।
हत्या की वजह: पत्नी पर अवैध संबंधों का शक सुशील शर्मा को शक था कि नैना का अपने कॉलेज फ्रेंड और कांग्रेस साथी मतलूब करीम से अफेयर चल रहा है। घटना वाली रात उसने नैना को फोन पर बात करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। जब उसने फोन मिलाया, दूसरी तरफ मतलूब था। गुस्से में उसने नैना को गोली मार दी – दो गोलियां सिर और गर्दन में लगीं।
तंदूर में जलाने की कोशिश, लेकिन लपटों ने भेद खोल दिया हत्या के बाद सुशील ने अपने रेस्तरां ‘बागिया’ में मैनेजर केशव कुमार की मदद से नैना की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई। तंदूर में डालकर शव को मक्खन से जलाने की कोशिश की गई ताकि कोई पहचान न हो। लेकिन उठती लपटों ने सबका ध्यान खींचा और पुलिस मौके पर पहुंच गई।
पुलिस ने केशव कुमार को पकड़ लिया, लेकिन सुशील शर्मा फरार हो गया।
लाश की पहचान: एक अंगूठी ने खोल दी परतें शव की पहचान करना मुश्किल था। लेकिन टीवी पर खबर देखकर मतलूब करीम को शक हुआ। वह शव की शिनाख्त के लिए पहुंचा लेकिन लाश की हालत इतनी खराब थी कि वह पहचान नहीं पाया। लौटते समय उसे हाथ में एक अंगूठी दिखाई दी – वही अंगूठी नैना पहना करती थी। और यही बना पुलिस के लिए सबसे अहम सुराग।
पोस्टमार्टम से सामने आया सच पहले पोस्टमार्टम में मौत का कारण जलना बताया गया, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दूसरा पोस्टमार्टम करवाया। डॉक्टर टी.डी. डोगरा की टीम ने जांच की और बताया कि नैना की मौत जलने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी। इससे मामला पूरी तरह पलट गया।
गिरफ्तारी और सजा की लंबी लड़ाई
10 जुलाई 1995: 9 दिन तक फरार रहने के बाद सुशील शर्मा ने बेंगलुरु में सरेंडर कर दिया। उसने बाल मुंडवा लिए थे ताकि पहचान न हो।
27 जुलाई 1995: दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की।
7 नवंबर 2003: दिल्ली की निचली अदालत ने सुशील शर्मा को फांसी की सजा सुनाई।
2007: दिल्ली हाई कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा।
2013: सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, कहते हुए कि शरीर को काटने का कोई सबूत नहीं है।
21 दिसंबर 2018: दिल्ली हाई कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया, और सुशील शर्मा 23 साल जेल में बिताने के बाद बाहर आ गया।
सियासत, शक और सिस्टम – तीनों की परीक्षा यह केस सिर्फ एक निजी हत्या नहीं था – इसमें राजनीति की ताकत, पति-पत्नी के रिश्ते में शक, पुलिस की शुरुआती असफलता और कानूनी प्रक्रिया की धीमी रफ्तार शामिल थी। सुशील शर्मा एक राजनीतिक चेहरा था, और यही वजह रही कि मामला शुरू से ही चर्चाओं में बना रहा।
क्या यह न्याय था? या बहुत देर से मिला इंसाफ? इस सवाल का जवाब आज भी बहस का विषय है। नैना साहनी की मौत एक व्यक्तिगत घृणा की परिणति थी, लेकिन उसका अंजाम पूरे समाज के लिए एक चेतावनी बन गया। इस केस ने दिखाया कि शक कितना खतरनाक हो सकता है, और न्याय कितनी लंबी लड़ाई के बाद मिलता है।
निष्कर्ष तंदूर मर्डर केस भारतीय आपराधिक इतिहास के सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक है। यह केस आज भी लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि रिश्तों में पारदर्शिता और संवाद की कितनी अहमियत होती है। वरना, एक गलतफहमी – एक जान की कीमत बन सकती है।