Tumko Meri Kasam Review: जज्बातों से भरी फिल्म की कहानी छू लेगी दिल, Anupam Kher की परफॉर्मेंस ने फूंकी जान
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई डेस्क। सृष्टि की जननी नारी होती है। अगर वह मां बनने में असमर्थ हो तो सारा दोष उस पर मढ़ दिया जाता है। वहीं पुरुष को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता और उसकी शारीरिक कमी पर बात नहीं की जाती। ऐसे में डा. अजय मुर्डिया उन दंपतियों के लिए आशा की किरण बने जो माता-पिता बनने के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने 1988 में इंदिरा आइवीएफ की स्थापना की, जिसके जरिए हजारों निसंतान दंपतियों के घरों में किलकारियां गूंजी।
कैसी है तुमको मेरी कसम की कहानी?
कहानी कोर्ट रूम ड्रामा के इर्द गिर्द बुनी गई है जिसकी शुरुआत इंदिरा आईवीएफ के मालिक डा अजय मुर्डिया (अनुपम खेर) को जमानत मिलने के साथ होती है। वह इंदिरा आईवीएफ को बचाने की जंग लड़ते हैं। दरअसल, राजीव खोसला (मेहेरजान बी मजदा) ने डा अजय पर उसे जान से मारने का आरोप लगाया होता है। अजय के मामले की पैरवी जहां मीनाक्षी (एशा देओल) कर रही होती हैं वहीं राजीव का वकील रामनाथ त्रिपाठी (सुशांत सिंह) है। राजीव चेयरमैन की कुर्सी से अजय को हटाकर खुद उस पर विराजमान होना चाहता है। अदालती कार्यवाही के दौरान अजय की जिंदगी की परतें खुलना शुरू होती हैं।
यह भी पढ़ें- My Melbourne Review: चार अनूठी कहानियों में दिखी पहचान और संघर्ष की झलक, थिएटर जाने से पहले पढ़ें रिव्यू
कैसा है विक्रम भट्ट का निर्देशन?
गुलाम, राज, कसूर, 1920 जैसी हिट फिल्में दे चुके विक्रम भट्ट ने पहली बार बायोपिक फिल्म निर्देशित की है। उन्होंने कोर्ट रूम ड्रामा के जरिए अजय की जिंदगी की परतें खोली हैं जिसमें उनकी बेगुनाही साबित करने को लेकर रचा ड्रामा कौतूहल को बनाए रखता है। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए उन्होंने सिनेमाई लिबर्टी भी ली है। अजय के उतार-चढ़ाव भरे इस सफर में इंदिरा को कैंसर होना और उन्हें बचा न पाने की बेबसी का दृश्य झकझोर देता है।
Photo Credit – Instagram
कहां चूकी फिल्म?
फिल्म में कोई भी अंतरंग दृश्य या गाली गलौज नहीं है। फिल्म की दिक्कत है इसकी लंबी अवधि। कुलदीप मेहन अपनी चुस्त एडीटिंग से उसे कम करके इसे ज्यादा दिलचस्प बना सकते थे। एशा के पात्र में भी कसाव की जरूरत थी। वकील के तौर पर उन्हें ज्यादा चतुर दिखाने की आवश्यकता थी।
उम्दा है अनुपम खेर की परफॉर्मेंस
कलाकारों की बात करें तो प्रौढ़ अजय बनें अनुपम खेर यहां पर भी प्रभाव छोड़ते हैं। वह इंदिरा आईवीएफ से लगाव और उसे बचाने की मुहिम में हर भाव को शिद्दत से जीते हैं। वहीं युवा अजय की भूमिका में इश्वाक सिंह के पात्र में कई शेड्स हैं। वह अजय के द्वंद्व, संघर्ष और जुनून को पूरी आत्मीयता से परदे पर साकार करते हैं। इंदिरा की भूमिका में अदा शर्मा का काम सराहनीय है। वकील की भूमिका में एशा देओल और सुशांत सिंह की जिरह को थोड़ा और रोचक बनाने की जरूरत थी।
Photo Credit – YouTubeपंचायत के बनराकस यानी दुर्गेश कुमार यहां पर अपनी संक्षिप्त भूमिका में प्रभाव छोड़ जाते हैं। संगीतकार प्रतीक वालिया का संगीत कहानी के भावों के अनुरूप है। उदयपुर से मुंबई आती जाती कहानी को सिनेमेटोग्राफर नरेन ए गेडिया ने खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है।
यह भी पढ़ें- Be Happy Review: पिता-पुत्री के खूबसूरत रिश्ते पर आधारित है फिल्म, रेमो से कई मामलों में हो गई चूक