इस गांव में भूत के डर से औरतों के कपड़े पहनने लगे लोग, घर के बाहर खड़ा किया बिजूका
विज्ञान के इस आधुनिक युग में जहां तकनीक इंसान को चांद से भी आगे पहुंचा चुकी है, वहीं आज भी दुनिया के कई हिस्सों में अंधविश्वास की जड़ें बेहद गहरी हैं। विज्ञान ने भले ही भूत-प्रेत जैसी बातों को मान्यता नहीं दी है, लेकिन कुछ समुदाय आज भी इन रहस्यमयी घटनाओं को पूरी गंभीरता से लेते हैं। ऐसा ही एक मामला थाईलैंड के नाखोन फेनम प्रांत के एक गांव में सामने आया, जहां भूत से बचने के लिए पुरुष औरतों के कपड़े पहनने लगे।
विधवा के भूत का डर बना मुसीबत इस गांव में कुछ ही दिनों के भीतर सोते-सोते पांच पुरुषों की रहस्यमयी मौत हो गई। किसी को बीमारी नहीं थी, कोई हादसा नहीं हुआ, फिर भी लोग मरते जा रहे थे। गांव के लोगों ने इसका जिम्मेदार किसी बीमारी को नहीं बल्कि एक विधवा औरत के भूत को ठहराया। उनका मानना था कि यह भूत गांव के मर्दों को अपना शिकार बना रहा है और उनकी “आत्मा खींच लेता है”।
औरतों के कपड़े पहनने लगे मर्द इस डर ने गांव में अजीब स्थिति पैदा कर दी। महिलाओं को यह डर सताने लगा कि कहीं उनका पति या बेटा अगला शिकार न बन जाए। ऐसे में उन्होंने एक उपाय निकाला – मर्दों को औरतों के कपड़े पहनाकर रखने का। उनका मानना था कि अगर भूत को लगेगा कि गांव में सिर्फ महिलाएं हैं, तो वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
गांव में अब पुरुष साड़ी जैसे पारंपरिक स्त्री वस्त्र पहनते दिखने लगे। कुछ लोगों ने तो लिपस्टिक और महिलाओं की हेयरस्टाइल भी अपनानी शुरू कर दी। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि यह तरीका उन्हें बचा सकता है।
बिजूका भी बना हथियार अंधविश्वास यहीं नहीं रुका। गांव वालों ने एक और तरकीब निकाली – भूत भगाने के लिए विशेष ‘बिजूका’ बनाना। यह बिजूका (कौव्वा भगाने का पुतला) आम पुतले जैसा नहीं था। इसे एक पुरुष के प्राइवेट पार्ट के साथ तैयार किया गया, जिसकी लंबाई 80 सेंटीमीटर थी। उस पर लाल रंग से लिखा गया – “यहां कोई मर्द नहीं है।”
गांव के घरों के बाहर ये बिजूके लगाए गए ताकि विधवा का भूत इन्हें देखकर डर जाए और गांव छोड़ दे। अजीब बात यह रही कि जब से यह उपाय किया गया, किसी भी नए मर्द की मौत की खबर नहीं आई। हालांकि यह साबित नहीं हो पाया कि मौतें किसी बीमारी से हुई थीं या सचमुच किसी रहस्यमयी ताकत का असर था।
डर बना हुआ है गांव के बुजुर्ग अब भी डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि अब किशोर लड़कों पर खतरा आ सकता है। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया,
“मेरे घर में डर का माहौल है। पांच लोग पहले ही मर चुके हैं, और मुझे लगता है कि यह किसी सामान्य बीमारी की वजह से नहीं हुआ। मेरी पत्नी और बच्चे रोज डरते हैं कि कहीं मैं भी अगला शिकार न बन जाऊं।”
विज्ञान बनाम अंधविश्वास इस पूरे मामले से एक बार फिर ये सवाल उठता है कि क्या आज भी हम वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास से बाहर नहीं आ पाए हैं? जहां एक तरफ विज्ञान हर सवाल का तर्कसंगत उत्तर देने की कोशिश करता है, वहीं समाज के कुछ हिस्से अभी भी भूत-प्रेत की कहानियों पर विश्वास करते हैं, और उससे जुड़ी विचित्र परंपराओं को अपनाते हैं।
वास्तव में, थाईलैंड जैसे देश जहां प्राचीन मान्यताओं और आध्यात्मिकता की गहरी पकड़ है, वहां इस तरह के किस्से कोई नई बात नहीं हैं। लेकिन जब ऐसी मान्यताएं लोगों के व्यवहार और जीवनशैली को पूरी तरह बदल देती हैं, तब यह सिर्फ संस्कृति नहीं, एक चुनौती बन जाती है।
निष्कर्ष यह घटना केवल थाईलैंड के गांव की नहीं, बल्कि यह एक संकेत है कि अंधविश्वास आज भी कई समाजों में कितना प्रभावी है। मौत का कारण चाहे जो भी रहा हो – बीमारी, ज़हरीले कीड़े या कोई अन्य कारण – लेकिन जब लोगों को वैज्ञानिक जानकारी नहीं होती, तो वे ऐसे उपायों की तरफ जाते हैं जो डर और अफवाहों पर आधारित होते हैं।
विज्ञान के इस आधुनिक युग में जहां तकनीक इंसान को चांद से भी आगे पहुंचा चुकी है, वहीं आज भी दुनिया के कई हिस्सों में अंधविश्वास की जड़ें बेहद गहरी हैं। विज्ञान ने भले ही भूत-प्रेत जैसी बातों को मान्यता नहीं दी है, लेकिन कुछ समुदाय आज भी इन रहस्यमयी घटनाओं को पूरी गंभीरता से लेते हैं। ऐसा ही एक मामला थाईलैंड के नाखोन फेनम प्रांत के एक गांव में सामने आया, जहां भूत से बचने के लिए पुरुष औरतों के कपड़े पहनने लगे।
विधवा के भूत का डर बना मुसीबत इस गांव में कुछ ही दिनों के भीतर सोते-सोते पांच पुरुषों की रहस्यमयी मौत हो गई। किसी को बीमारी नहीं थी, कोई हादसा नहीं हुआ, फिर भी लोग मरते जा रहे थे। गांव के लोगों ने इसका जिम्मेदार किसी बीमारी को नहीं बल्कि एक विधवा औरत के भूत को ठहराया। उनका मानना था कि यह भूत गांव के मर्दों को अपना शिकार बना रहा है और उनकी “आत्मा खींच लेता है”।
औरतों के कपड़े पहनने लगे मर्द इस डर ने गांव में अजीब स्थिति पैदा कर दी। महिलाओं को यह डर सताने लगा कि कहीं उनका पति या बेटा अगला शिकार न बन जाए। ऐसे में उन्होंने एक उपाय निकाला – मर्दों को औरतों के कपड़े पहनाकर रखने का। उनका मानना था कि अगर भूत को लगेगा कि गांव में सिर्फ महिलाएं हैं, तो वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
गांव में अब पुरुष साड़ी जैसे पारंपरिक स्त्री वस्त्र पहनते दिखने लगे। कुछ लोगों ने तो लिपस्टिक और महिलाओं की हेयरस्टाइल भी अपनानी शुरू कर दी। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि यह तरीका उन्हें बचा सकता है।
बिजूका भी बना हथियार अंधविश्वास यहीं नहीं रुका। गांव वालों ने एक और तरकीब निकाली – भूत भगाने के लिए विशेष ‘बिजूका’ बनाना। यह बिजूका (कौव्वा भगाने का पुतला) आम पुतले जैसा नहीं था। इसे एक पुरुष के प्राइवेट पार्ट के साथ तैयार किया गया, जिसकी लंबाई 80 सेंटीमीटर थी। उस पर लाल रंग से लिखा गया – “यहां कोई मर्द नहीं है।”
गांव के घरों के बाहर ये बिजूके लगाए गए ताकि विधवा का भूत इन्हें देखकर डर जाए और गांव छोड़ दे। अजीब बात यह रही कि जब से यह उपाय किया गया, किसी भी नए मर्द की मौत की खबर नहीं आई। हालांकि यह साबित नहीं हो पाया कि मौतें किसी बीमारी से हुई थीं या सचमुच किसी रहस्यमयी ताकत का असर था।
डर बना हुआ है गांव के बुजुर्ग अब भी डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि अब किशोर लड़कों पर खतरा आ सकता है। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया,
“मेरे घर में डर का माहौल है। पांच लोग पहले ही मर चुके हैं, और मुझे लगता है कि यह किसी सामान्य बीमारी की वजह से नहीं हुआ। मेरी पत्नी और बच्चे रोज डरते हैं कि कहीं मैं भी अगला शिकार न बन जाऊं।”
विज्ञान बनाम अंधविश्वास इस पूरे मामले से एक बार फिर ये सवाल उठता है कि क्या आज भी हम वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास से बाहर नहीं आ पाए हैं? जहां एक तरफ विज्ञान हर सवाल का तर्कसंगत उत्तर देने की कोशिश करता है, वहीं समाज के कुछ हिस्से अभी भी भूत-प्रेत की कहानियों पर विश्वास करते हैं, और उससे जुड़ी विचित्र परंपराओं को अपनाते हैं।
वास्तव में, थाईलैंड जैसे देश जहां प्राचीन मान्यताओं और आध्यात्मिकता की गहरी पकड़ है, वहां इस तरह के किस्से कोई नई बात नहीं हैं। लेकिन जब ऐसी मान्यताएं लोगों के व्यवहार और जीवनशैली को पूरी तरह बदल देती हैं, तब यह सिर्फ संस्कृति नहीं, एक चुनौती बन जाती है।
निष्कर्ष यह घटना केवल थाईलैंड के गांव की नहीं, बल्कि यह एक संकेत है कि अंधविश्वास आज भी कई समाजों में कितना प्रभावी है। मौत का कारण चाहे जो भी रहा हो – बीमारी, ज़हरीले कीड़े या कोई अन्य कारण – लेकिन जब लोगों को वैज्ञानिक जानकारी नहीं होती, तो वे ऐसे उपायों की तरफ जाते हैं जो डर और अफवाहों पर आधारित होते हैं।